SKMS Code of Conduct

शोधलेखनऔर फिल्मांकन आदि कार्यों के लिए संगतिन किसान मज़दूर संगठन तक आने वाले

अध्ययनकर्ताओं के लिये कुछ उसूलक़ायदे और शर्तें

 

Sangtin Kisan Mazdoor Sangathan’s (SKMS’s)

Code of Conduct for Researchers, Writers, Filmmakers and Others Interested in Working with the Sangathan

 

आप शोधार्थी हैं? लेखक हैं? डाक्यूमेंट्री फिल्में बनाते हैं? या फिर किसी अन्य किस्म के विद्वान, कलाकार, या वैज्ञानिक हैं? और आप संगतिन किसान मज़दूर संगठन के साथ जुड़कर काम करना चाहते हैं?

आपका दिल से स्वागत है!

हमारा संगठन घने और मज़बूत रिश्तों के दम पर बना और बढ़ा है। आप इस संगठन के साथ अपनी यात्रा शुरू करें, और हम और आप एक दूसरे पर भरोसा करके एक साथ चलने के लिये पहले क़दम बढ़ायें, इसके पहले हम चाहेंगे कि संगठन के साथी आप के साथ एक बुनियादी समझ बना लें ताकि हम एक-दूसरे से क्या अपेक्षाएं रखते हैं यह लगातार साफ़ होता चले। बल्कि हम तो चाहेंगे कि हम और आप एक लम्बे-दौर का सफ़र शुरू करें जिसमें जानकारियों, समझ, और ऊर्जाओं का आदान-प्रदान कुछ इस तरह हो कि शोषित और दलित समाज के ख़िलाफ़ गै़र-बराबरियों को मिटाने के संघर्ष में हम सब एक-दूसरे का सहारा बन सकें।

संगठन के काम के बारे में यदि आप जानकारी पाना चाहते हों तो  हम आपको  पैम्फ़्लेट, अख़बारों में छपे लेख, संगठन के अख़बार ‘हमारा सफ़र’ के अंक, और शोधार्थियों द्वारा लिखे लेख और रपटें उपलब्ध करवा सकते हैं। हमारे संगठन की नींव में कुछ ऐसे मूल्य हैं जो ज्ञानोत्पादन और दस्तावेज़ीकरण की राजनीति के साथ जुड़े हैं, और जो केवल राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर ही नहीं, बल्कि स्थानीय और आत्मीय स्तरों पर भी हमारे बीच के रिश्तों और सच्चाइयों को परिभाषित करते हैं। अपनी संगठनात्मक यात्रा की शुरूआत से ही हम ज्ञान और ताक़त की अन्यायपूर्ण तस्वीर को बदलने के लिए लड़ते आये हैं और इसका अंदाज़ा आपको दो किताबों से खूब मिल जायेगा – संगतिन यात्राः सात ज़िंदगियों में लिपटा नारी विमर्श और एक और नीमसारः संगतिन आत्ममंथन और आंन्दोलन। इन किताबों के मुख्य बिन्दु अंग्रेज़ी की पुस्तकों और लेखों में भी उपलब्ध हैं। हम चाहेंगे कि हमारे साथ चलने से पहले आप इन किताबों में दर्ज मसलों और बहसों से परिचित होने की कोशिश करें ताकि आप हमारी बुनियाद में पैठे सिद्धान्तों को समझकर, और उनका आदर करते हुए, हमारे साथ चल सकें।

संगतिन किसान मज़दूर संगठन हज़ारों दलित और शोषित किसानों-मज़दूरों का एक साझा मंच है जहाँ हम सब मिलकर हमारे हाशिये पर ढकेले गये साथियों के हक़-हुक़ूक़ और उनके मान-सम्मान के लिए संघर्षरत हैं। संगठन का सारा काम सामूहिक रूप से विचार विमर्श करते हुए, साझी समझ के आधार पर योजना बनाकर होता है। कोई भी योजना या विचार तब तक लागू नहीं होता जब तक क्षेत्रीय बैठकों और गाँवों तक साथियों के बीच उस पर सहमति न बन जाये। सहमति बनने के बाद संगठन के सब साथी मिलजुलकर उस योजना या विचार को ज़मीन पर लागू करने का काम करते हैं। इस तरह की सामूहिक प्रक्रिया में उतार-चढ़ाव भी आते हैं जिन पर खुलकर बहस-मुबाहिसा करने से हम सबको कुछ न कुछ महत्वपूर्ण सीखने को मिलता है। संगठन से जुड़कर सीखने-समझने वाले सभी लोगों के लिये यह ज़रूरी है कि वे संगठन की सामूहिक प्रक्रियाओं के साथ चलने को तैयार रहें।

जब भी सीतापुर के गाँवों से दूर के किसी क्षेत्र से आकर कोई हमारे साथ काम करने की बात कहता है तो हमारे जे़हन में पहला सवाल यह आता है कि यह यात्रा किसकी है? केवल उस व्यक्ति की जो हमसे कुछ सीखकर दुनिया को, या अपने अध्ययन-क्षेत्र के लोगों को, कुछ ज़रूरी बातें बताना चाहता है, या फिर यह संगठन के साथियों के साथ मिलकर किया जाने वाला एक बराबरी का सफ़र है जिसमें जो भी जुड़ेगा उसे कुछ-न-कुछ ज़रूरी पाठ सीखने को मिलेगा? हम ऐसी  स्थितियों से दूर रहना चाहते हैं जहाँ लोग अपनी पढ़ाई या अध्ययन करके चले जाते हैं। उनको डिग्री मिल जाती है, या उनका परचा अथवा किताबें छप जाती हैं, बिना इस सवाल से जद्दोजहद किये कि जिन गाँवों के लोग उनको जानकारी या तथ्य उपलब्ध करवाने के लिए अपनी रोज़मर्राह जिऩ्दगी के काम-काज छोड़कर उनके साथ खप जाते हैं, उनको क्या हासिल होगा?

इन्हीं सब वास्तविकताओं को देखते हुए हमने कुछ उसूल-क़ायदे और शर्तें बनानी शुरू की हैं, जो निम्नवत हैं। यहाँ ’अध्ययनकर्ताओं’ में हम उन सबको जोड़ रहे हैं जो शोध, लेखन, फ़िल्मीकरण, या अन्य मक़सदों से हमारे साथ कुछ पढ़ने-लिखने-रचने-सीखने-समझने के लिये आना चाहते हैं। हम जानते हैं कि हर अध्ययन की स्थितिओं, परिस्थितियों, और उद्देश्यों में अंतर हो सकता है इसलिए यह दस्तावेज़ एक लचीला दस्तावेज़ है जिसमें ज़रुरत के हिसाब से तब्दीलियां होती रहेंगी।

  • अध्ययनकर्ता संगठन की ज़िला-स्तरीय प्रतिनिधि टीम को अपने उद्देश्यों से अवगत करायें, साथ में यह भी साझा करें कि अध्ययन से निकली हुई चीज़ों का कहाँ और किन लोगों के बीच में प्रयोग होगा, ताकि संगठन के साथी अपने सुझाव और मशवरा दे सकें।
  • अध्ययनकर्ता संगठन से मिले सारे सुझावों को गम्भीरता से लें और उनके आधार पर अध्ययन या लेखन या फ़िल्मीकरण के उद्देश्यों और अपने सवालों को दोहरायें, निखारें, और साथियों के साथ फिर से साझा करें। अगर किसी तरह की असहमति होती है तो इस पर भी साथियों के साथ बात हो। यह ज़रूरी नहीं है कि एक ही बात पर ज़बर्दस्ती सबकी सहमति बने। हाँ, यह महत्वपूर्ण है कि असहमति को लेकर भी चर्चा हो और वह अध्ययन में बाक़ायदा दर्ज हो।
  • अध्ययनकर्ता कई बार सोच लेते हैं कि गाँव-स्तर के साथी अध्ययन के कठिन पहलुओं को नहीं सीख पायेंगे। अध्ययनकर्ता ऐसा रुख़ अपनाने की बजाय कठिन-से-कठिन मसलों को भी साथियों के बीच में साझा करें ताकि सब मिलकर उन मसलों पर अपनी समझ बना सकें। अध्ययन के दौरान समय-समय पर अध्ययनकर्ता और संगठन के साथी इस बात पर खुली चर्चा करें कि अध्ययन और उसकी प्रक्रियाओं से संगठन के साथी क्या सीख रहे हैं? और अध्ययनकर्ता संगठन के साथियों से क्या सीख रहे हैं? अध्ययन दोनों पक्षों की सोच-समझ बढ़ाने में किस तरह मदद कर रहा है? क्या अध्ययन साथियों–और उनके काम–को सबलता की ओर ले जाने में मदद कर पा रहा है? यदि नहीं, तो अध्ययन को इस  दिशा में ले जाने के लिए क्या क़दम उठाये जा सकते हैं?
  • यदि अध्ययनकर्ता संगठन को किसी किस्म की आर्थिक या अन्य साधन अथवा मदद दे सकने की स्थिति में हों तो यह ज़रूरी है कि संगठन के साथ बातचीत के बाद ही यह फ़ैसला लिया जाय कि वह मदद संगठन तक किस प्रकार पहुँचे।
  • जब अध्ययनकर्ता  किसी भी साथी के घर में रहने-खाने या किसी अन्य सुविधा या सहायता का ख़र्च दे सकने की स्थिति में हों तो यह बात संगठन के संज्ञान में होनी चाहिए ताकि उसी हिसाब से फ़ैसले लिए जा सकें।
  • अध्ययनकर्ताओं के काम से जो भी जानकारी, प्रकाशन, या फ़िल्म, इत्यादि निकलकर आये उसमें संगठन के साथियों के सहयोग का न्यायपूर्ण ढंग से उल्लेख किया जाये, और इस पर पहले से ही साझा समझ बन जाये कि यह उल्लेख कैसे और कहाँ किया जायेगा। अध्ययन की रिपोर्ट में संगठन और साथियों को कहाँ और किस तरह की जगह मिलेगी, इस पर सबके बीच लगातार एक स्पष्टता का बना रहना ज़रूरी है।
  • अध्ययनकर्ताओं के काम से जो भी जानकारी, प्रकाशन, या फ़िल्म, इत्यादि निकलकर आये उसके आधार पर संगठन के साथियों को साथ लेकर कोई सार्थक कार्यक्रम बनाया जाये ताकि साथी उस काम का अपने जीवन और संघर्ष में कुछ लाभ उठा सकें।
  • समय-समय पर संगठन की जो भी ज़रुरत हो, उसमें संगठन से जुड़ने वाले अध्ययनकर्ता अपनी सामर्थ्यानुसार नयी समझ, सूचनाएँ, और संसाधनों के ज़रिये योगदान दें जिससे संगठन के काम को लगातार बल मिलता रहे और साथ ही, संगठन के साथियों को भी अपनी समझ बनाने के मौक़े मिलते रहें।
  • अध्ययनकर्ता अपने अन्तर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, एवं राज्य-स्तर पर मौजूद दायरों में संगठन की पहचान व तालमेल बनाने में मदद करें। साथ ही, अध्ययनकर्ता अपनी क्षमताओं तथा संगठन की ज़रूरतों के हिसाब से संगठन की सामग्री-निर्माण–जैसे परचा, पोस्टर, अख़बार, वेब-साइट, नाटक, गीत, दस्तावेज़, आदि बनाने–में भी भूमिका निभायें।
  • संगठन के साथियों के जीवन में अंग्रेज़ी भाषा का एक ख़ास किस्म का वर्चस्व रहा है, इसलिये अध्ययनकर्ता यदि हिन्दी जानते हों तो जहाँ तक हो सके, संगठन के साथियों के सामने अंग्रेज़ी में बात करने से बचें। दो अंग्रेज़ी बोलने वाले साथी अगर हिन्दी जानते हों तो साथियों के सामने आपस में अंग्रेज़ी में ऐसी कोई बात नहीं करें जिसे वह साथियों के सामने खुलकर नहीं कहना चाहते। इससे साथियों का अपमान होता है और आपस में ग़लतफ़हमियां और अविश्वास भी पैदा हो जाते हैं।
  • जो भी लिखा या रचा जा रहा है, उसकी कम से कम दो प्रतिलिपियाँ संगठन को जरूर मिलें — पहले ड्राफ्ट के रूप में और बाद में अपने अंतिम स्वरुप में।

इस निवेदन को ध्यान से पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया!

You are a researcher, a writer, a maker of documentary films, or another kind of scholar, artist, or scientist, and you want to work with Sangtin Kisan Mazdoor Sangathan (SKMS)?

We welcome you with an open heart.

SKMS has emerged and grown from thick and strong bonds. Before you begin your journey with this Sangathan and before we trust one another to take our first steps together, the saathis or members of Sangathan would like to form a basic understanding with you to build a continuous clarity about what we expect from one another. In fact, we hope to begin a long-term relationship where the mutual exchange of information, understandings, and energies can happen in such a way that we can become one another’s support in fighting against the inequalities faced by the exploited and the Dalit people in our society.

If you want to learn about the work of SKMS, the Sangathan can help you gain access to pamphlets, newspaper articles, issues of Sangathan’s newspaper (‘Hamara Safar’), and essays and reports prepared by researchers. SKMS’s foundational values and principles have been concerned with the politics of knowledge making and documentation which shape our relationships and realities not only at the national and global scales but also at the local and intimate levels. From the very beginning, our Sangathan’s journey has sought to change the unjust landscape of knowledge and power and you can get a sense of this work from two books –Sangtin Yatra: Saat Zingiyon Mein Lipta Nari Vimarsh and Ek Aur Neemsaar: Sangtin Atmamanthan aur Andolan. The key points of these books are also available in books and articles in English. Before we begin to walk together, we ask that you familiarize yourself with the issues and debates documented in these books so that you can understand and respect the principles that constitute our foundation.

SKMS is a shared platform of several thousand Dalit and exploited farmers and laborers where all the saathis work together to fight for the rights and dignity of those who have been pushed to the margins. The Sangathan works through collective discussion and planning that is based on shared analysis and understandings. No plan or idea is implemented until it is discussed in kshetriya baithaks—or area-wise meetings–and there is general agreement among saathis in the villages on a given matter. After this agreement is achieved, saathis work together to mobilize that idea on the ground. In such a collective process, there are always ups and downs and an open debate about those turbulences always teaches us something significant. Everyone who wants to learn from the Sangathan should be prepared to move with the collective processes of the Sangathan.

When someone who lives far away from the villages of Sitapur expresses a desire to work with us, the first question that comes to our minds is: Whose journey would this be? Only of that person who seeks to learn something from us and then share some critical insights with the world or with the people who work in their field? Or, will the SKMS saathis be equal partners in this journey so that everyone who joins in will have something useful to learn? We would like to avoid scenarios where researchers come, undertake their study, and leave. They get their degrees or publications without confronting the issue of what would be gained by the people in the villages who set aside tasks associated with their everyday lives in order to provide researchers with the information and facts they need.

A consideration of these realities have led us to articulate some principles, rules, and conditions, which we have listed below. The word ‘scholars’ here refers to all those who want to spend time with us to study, write, create, understand, or analyze things in relation to their research, writing, filmmaking, and other similar work. We recognize that the circumstances, contexts, and objectives of each study can vary, so this is a flexible document in which changes will be made as needed.

Scholars should share their goals with the district-level team that represents SKMS, and they should also share where and among whom the outcomes of the study will be shared so that SKMS saathis can offer their suggestions and serve as consultants.

  • Scholars should consider seriously all the suggestions received from SKMS, revise and refine their objectives and questions accordingly, and share them again with the saathis. In case of disagreements, it is important to discuss them as well. While it is not necessary to enforce consensus, it is important that the disagreements be discussed and systematically noted in the study.
  • Many a time, scholars assume that saathis at the village-level will not be able to understand difficult aspects of the study. Rather than make such assumptions, scholars should share the toughest aspects of their study with the saathis so that all can develop their understanding on those issues. During the course of the study, scholars and the Sangathan should have open discussions on what understandings saathis are gaining from the study and its processes, and what the scholars are learning from the saathis. How is the study helping to develop the analysis on both sides? Is the study further enabling the saathis and their work? If not, what steps can be taken to help the study move in that direction?
  • If the scholar can provide monetary assistance or other forms of resources, then it is important that the Sangathan be involved in determining how that help should reach the Sangathan.
  • When scholars stay in the homes of saathis and can pay for their own living, food, or other expenses, then the Sangathan must be informed about this so that decisions can be taken accordingly.
  • Saathis should receive just credit for their contributions in the work that scholars create in the form of information, publications, films, etc. There should be a prior mutual understanding about where and how saathis’ labor will be acknowledged in the work. There should be a continuous clarity among all with regard to the place saathis will get in the reports and documents that emerge from the study.
  • The information, publications, or films etc. emerging from the study should become the basis for some kind of meaningful initiative that can benefit saathis in their own lives and struggles.
  • Scholars should contribute whatever new understandings, information, and resources they can to the emerging needs of SKMS from time to time so that the work of the Sangathan can gain strength while also giving saathis the opportunities to deepen their understandings and analyses.
  • Scholars should deploy their contacts in international, national, and regional circles to help build connections and relationships of the Sangathan. Scholars should help to create such materials as papers, posters, newspapers, websites, plays, songs, and documents in accordance with their own abilities and the needs of the Sangathan.
  • English has symbolized a particular kind of dominance in the lives of our saathis. Therefore, if scholars know Hindi, they should try to avoid the use of spoken English in ways that might make saathis feel excluded from the conversations. If two people working with SKMS who speak English also know Hindi, they should avoid talking before the other saathis in English about anything that they do not wish to discuss openly before everyone. Otherwise saathis feel disrespected and this encourages misunderstandings and mistrust.
  • SKMS should receive at least two copies of whatever is being written or created – first in the draft form and then in the final form.

Thank you for reading this with care.

Suggested citation:
Sangtin Kisan Mazdoor Sangathan. 2019. “SKMS Code of Conduct.” AGITATE! 1: https://agitatejournal.org/article/skms-code-of-conduct/.

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