दस्तक
घुप अँधेरे में सांस लेती
ना-दीदा खट खट
तारीक दुनिया में सरसराती
हवा की दस्तक
यह क्या जहाँ है
जहाँ अँधेरे न जाने कब से
चहार जानिब तने हुए हैं
न जाने कब से
हम अपनी आँखों की रौशनाई में ख़्वाब सींचे
सवाल ओढ़े
सरापा चुप से थमे हुए हैं
हमारी नज़रें
हमारी क़िस्मत की तीरगी से उलझ रही हैं
हमारी नब्ज़ें
घड़ी की टिक टिक से बंध गयी हैं
हम एक दूजे की चलती सांसों से
ज़िंदगानी कशीद कर के
सियाह जेबों में भर रहे हैं
हर एक लम्हे में मर रहे हैं
कोई तो आये
कहीं से आये
हमारे आँगन के बंद किवाड़ों को खटखटाये
अज़ाब रुत का तिलिस्म तोड़े
सराब धरती के ज़र्द मौसम में जान छिड़के
तो ख़्वाब जागें
सवाल जागें तो जी उठें हम
हर एक लम्हे में रंग भर के
शराब-ए हस्ती को पी चुकें हम
मगर यह डर है
आसेब छूटे, हमारे ख़स्ता किवाड़ जागें
तो उस तरफ़ भी
वही अँधेरे ही मुन्तज़िर हों
हम अपनी आँखों में ख़्वाब सींचे
तारीक राहों में चुप खड़े हैंहवा की आहट पे चौंकते हैं