एजिटेट! की तरफ़ से प्रोफ़ेसर शैलजा पाइक को उनकी 2024 मैकआर्थर फ़ेलोशिप पर दिली मुबारकबाद!
“लोगों के बीच मौजूद असमानताओं और उनके अमानवीयकरण का अध्ययन करके हमें सार्वभौमिक मानवता और सर्वजन मुक्ति के बारे में सोचने के लिए नयी नज़र और तरीक़े मिलते हैं।”
यह आंदोलनकारी अंतर्दृष्टि हमें मिलती है इतिहासकार शैलजा पाइक से, जिन्होंने दलित महिलाओं के जीवन में उतर कर आधुनिक भारत के जाति, लिंग और यौनिकता के इतिहास पर गहरा और रचनात्मक शोध किया है और सत्ता तथा हाशियों से संघर्ष-निर्माण को समझने और लिखने के लिए हमें नयी नज़र और औज़ार दिए हैं। एजिटेट! पाइक की 2024 मैकआर्थर फ़ेलोशिप पर उन्हें बधाई देता है। पाइक के साथ-साथ यह महत्त्वपूर्ण सम्मान अर्जित करने वालों में कवि जेरिको ब्राउन, फ़िल्म निर्माता स्टर्लिन हार्जो, क़ानूनी और लोक नीति शोधकर्ता डोरोथी रॉबर्ट्स, और विकलांगता न्याय कार्यकर्ता ऐलिस वॉन्ग सहित इक्कीस अन्य प्रेरक हस्तियां शामिल हैं। मैकआर्थर फ़ेलोशिप, जिसे “जीनियस ग्रांट” के नाम से भी जाना जाता है, 800,000 अमरीकी डॉलर का बिना शर्त अनुदान है, और उन चयनित लोगों को दिया जाता है जिन्होंने अपने क्षेत्र में अब तक असाधारण रचनात्मक कार्य किया है और आगे भी असाधारण काम करते रहने की संभावनाएं दिखाई हैं।
शैलजा पाइक के आंदोलनकारी योगदान को ज्ञान उत्पादन के स्थापित ढांचों में इस तरह की जगह मिलना वैश्विक उच्च शिक्षा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण है। आज जब हम नरसंहारों के बीच सांस ले रहे हैं, तब पाइक का काम यह मांग करता है कि हम संघर्ष के माध्यम से ज्ञान और आलोचना की संभावनाओं को तलाशें और उन्हें विस्तार और गहराई दें, ताकि संघर्ष के भीतर और संघर्ष के बाहर से हम उस सबको इज़्ज़त और सम्पूर्णता दे सकें जिसे सिलसिलेवार ढंग से हाशिए पर धकेल कर बेइज़्ज़त किया गया है और कुचला गया है। हम प्रोफ़ेसर पाइक के साहसी लेखन और सार्वभौमिक मानवता और सर्वजन मुक्ति की तलाश में उनके द्वारा पेश की जाने वाली बौद्धिक और राजनीतिक चुनौतियों से सीखना और समझना जारी रखेंगे।
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